सिर्फ 103 दिन में 8,800% चढ़ा रुची सोया, सेबी की जांच चाहते हैं विश्लेषक

घरेलू शेयर बाजार पर कई शेयर तेजी के रथ पर सवार हैं. इसी वजह से बाबा रामदेव की एक कंपनी, रुचि सोया, दिवालियापन के अंधेरे से निकल कर तेजी की चकाचौंध में शामिल हो गई है. इसकी तेजी ऐसी रही कि मार्केटकैप के आधार पर यह देश की टॉप 60 कंपनियों में शामिल हो गई है.

27 जनवरी के बाद से कंपनी का शेयर 8,818 फीसदी चढ़ चुका है. बीते शुक्रवार को यह शेयर 1,507 रुपये पर बंद हुआ था. इन 103 सत्रों में कंपनी का मार्केट कैप 500 करोड़ रुपये से 44,600 करोड़ रुपये पहुंच गया है. हालांकि, मार्च तिमाही के नतीजों के बाद सोमवार को यह शेयर 5 फीसदी लुढ़का.

मार्केट कैप के आधार पर रुचि सोया ने ल्यूपिन, टोरेंट फार्मा, टाटा स्टील, अंबुजा सीमेंट्स, हिंदुस्तान पेट्रोलियम, ग्रासिम, पंजाब नेशनल बैंक, हिंडाल्को, यूपीएल, कोलगेट पामोलिव और हैवल्स इंडिया जैसी दिग्गज कंपनियों को पीछे छोड़ दिया है.

विश्लेषक इस शेयर के प्रति बेहद सतर्क हो गए हैं. उनका मानना है कि सेबी को इस शेयर में तेजी की जांच करनी चाहिए. उसे कंपनी से पूछना चाहिए कि वह न्यूनतम 25 फीसदी पब्लिक शेयरहोल्डिंग के नियम का पालन कब तक करेगी.

बता दें कि कंपनी के शेयर को बाजार पर दोबारा लिस्ट करवाया गया था. इसके बाद से कंपनी के शेयरों में अपर सर्किट लग रहा है. हालांकि, मई के छह सत्रों के दौरान इस शेयर में 5 फीसदी का लोअर सर्किट लगा था.

कोलकाता के दिग्गज निवेशक अरुण मुखर्जी ने कहा कि खरीद-फरोख्त के लिए रुचि सोया के काफी कम शेयर बाजार में उपलब्ध हैं. यही इस शेयर के भाव में तेजी का कारण है. उन्होंने कहा, “इस शेयर में बुनियादी मजबूती का कोई आधार नहीं है. यह मांग और सप्लाई का बेहतरीन उदाहरण है.”

31 मार्च 2020 तक कंपनी के प्रमोटर्स के पास इसकी 99.03 फीसदी हिस्सेदारी थी. मुखर्जी ने कहा, “रिटेल निवेशकों के पास कंपनी की 1 फीसदी से कम हिस्सेदारी है. मुझे लगता है कि सेबी को संज्ञान लेते हुए इस शेयर को टी2टी सेगमेंट में डाल देना चाहिए. रिटेल निवेशकों के लिए यह शेयर खतरनाक है.”

टी2टी सेगमेंट में कारोबारियों को अनिवार्य डिलीवरी लेनी पड़ती है, और वे इंट्राडे कारोबार में शेयर नहीं बेच पाते. कंपनी के कुल 29.58 करोड़ शेयर हैं, जिसमें से 98.87 करोड़ शेयर पतंजलि ग्रुप के पास हैं, जबकि सार्वजनिक निवेशको के पास महज 33.4 लाख शेयर हैं.

स्वतंत्र बाजार विश्लेषक अंबरीश बालिगा ने मुखर्जी की बात का समर्थन किया. उन्होंने कहा, “शेयरों की कम संख्या होना ही इस शेयर में तेजी का कारण है. सेबी को इस विषय में जांच करनी चाहिए और पता लगाना चाहिए कि इसकी खरीद-फरोख्त में कौन लोग शामिल हैं.”

शुक्रवार को कंपनी ने नतीजे पेश किए. इसकी अनुसार, मार्च तिमाही में कंपनी को 41.24 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है, जो बीते साल इसी तिमाही में 32.10 करोड रुपये का मुनाफा था. हालांकि, कंपनी की नेट बिक्री 3,190.96 करोड़ रुपये रही, तो विगत मार्च तिमाही के 3,146.33 करोड़ रुपये से 1.42 फीसदी अधिक थी.

दिसंबर तिमाही में कंपनी का टैक्स और असाधारण तथ्यों से पूर्व का मुनाफा 24 गुना बढ़ कर 151 करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जो एक साल पहले 6.29 करोड़ रुपये था. हालांकि, इस दौरान कंपनी का रेवेन्यू सिर्फ 7 फीसदी बढ़कर 3,474 करोड़ रुपये से 3,713 करोड़ रुपये हो गया.

जबकि, “रीलिस्टिंग के समय निवेशकों को जबरदस्त घाटा हुआ था. कंपनी ने 100 शेयरों के बदले एक शेयर दिया था. सेबी को जांच करनी चाहिए कि रीलिस्टिंग के पांच महीने बाद भी प्रमोटर्स के पास 99 फीसदी हिस्सेदार क्यों है.” सेबी को प्रमोटर्स को हिस्सेदारी बेचने के लिए अधिक समय नहीं देनी चाहिए. निवेशकों की हितो की रक्षा करने के लिए बाजार नियामक को कंपनी के प्रमोटर्स से जल्द से जल्द जवाब तलब करना चाहिए.

शोभित अग्रवाल
शेयर बाजार विश्लेषक

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